विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA ब्लॉक से आम आदमी पार्टी (AAP) ने खुद को अलग कर लिया है. हालांकि यह कोई नई खबर नहीं है. लोकसभा चुनावों के बाद ही आप ने इंडिया गठबंधन का साथ करीब करीब छोड़ दिया था. फिर भी एक उम्मीद थी कि हो सकता है कि दिल्ली में चुनावी हार के बाद पार्टी के मुखिया अपनी रणनीति बदलें. हरियाणा चुनाव और दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी पार्टी ने कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ने की बजाए अपना अलग रास्ता अख्तियार किया था. आम आदमी पार्टी का हरियाणा चुनावों और दिल्ली विधानसभा चुनावों में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कितना सही और कितना गलत था अब ये बातें पुरानी हो चुकी हैं. दरअसल राजनीतिक दलों के हर फैसले भी अपने फायदे को ही ध्यान में रखकर लिए जाते हैं. जाहिर है कि आम आदमी पार्टी ने भी जो फैसला लिया है वह बहुत सोच समझकर लिया है.
पार्टी को इस फैसले से नुकसान होता है या फायदा फिलहाल ये भविष्य के गर्भ में है. पर अभी तो फिलहाल पार्टी को फायदा ही नजर आ रहा होगा. वैसे भी आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल राजनीति में नए हो सकते हैं पर इस समय देश के सबसे चतुर राजनीतिज्ञों में उनका नाम टॉप में रखा जाता है. इसलिए इतना तो तय है कि उन्होंने जो भी फैसला लिया है उसमें उन्हें केवल फायदा ही फायदा नजर आ रहा होगा. आइये देखते हैं कि आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन से अलग होने के फैसले के पीछे क्या कुछ रहा होगा.
1-अपने खास प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की मिट्टी पलीद करेगी
आम आदमी पार्टी का वोट बैंक करीब करीब वही है जो इस समय कांग्रेस का है. भारतीय जनता पार्टी के सामने अगर दोनों साथ मिलकर कहीं से भी चुनाव लड़ते हैं तो आम आदमी पार्टी को कोई फायदा नहीं होने वाला है. इससे बेहतर है कि वो अलग चुनाव लड़कर कांग्रेस के वोट बैंक को अपना ही बना ले. अगर साथ साथ चुनाव लड़ती हैं दोनों पार्टियां तो जाहिर है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के खिलाफ प्रचार नहीं कर सकेगी.
आम आदमी पार्टी जानती है कि साथ रहने से हो सकता है कि उसे कुछ सीटों और कुछ वोट्स का फायदा हो जाए पर इसमें असली मलाई तो कांग्रेस को जाएगी. आम आदमी पार्टी ये समझ चुकी है कि बिना कांग्रेस की मिट्टी पलीद किए उसका समय नहीं आएगा. यही कारण रहा कि पार्टी ने हरियाणा विधानसभा चुनावों में अकेले चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम किया. हरियाणा में आम आदमी पार्टी अलग चुनाव लड़कर कोई सीट नहीं जीत सकी पर कम से कम दो दर्जन सीटों पर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने में कामयाब रही. यही हाल गुजरात विधान सभा चुनावों में भी रहा.
2-गुजरात में दूसरे नंबर की पार्टी बनने की उम्मीद बढ़ेगी
दिल्ली में चुनावी हार मिलने के बाद पंजाब और गुजरात के विधानसभा उपचुनावों में आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीतकर दिखा दिया कि वो अभी खत्म नहीं हुई है. गुजरात से आम आदमी पार्टी के लिए बहुत उम्मीदें हैं. पार्टी यह जानती है कि अगर कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो उसे बहुत लाभ नहीं होने वाला है.
दरअसल गुजरात में 2022 के विधानसभा चुनाव में AAP ने कांग्रेस को और बड़ा झटका दिया था. आम आदमी पार्टी ने 14% वोट शेयर हासिल किया और पांच विधानसभा सीटें जीतीं थीं. 2022 में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी समझी जा रही थी. क्योंकि 2017 में कांग्रेस ने गुजरात में बेहतरीन प्रदर्शन किया था. पर आम आदमी पार्टी के उत्थान ने कांग्रेस के सपने पर पानी फेर दिया. AAP ने गुजरात में आदिवासी और ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी पैठ बनाई, जहां पहले कांग्रेस का प्रभाव था. इसके साथ ही शहरी क्षेत्र में पहले से आप की इकाइयां मजबूत हैं. हालांकि दोनों के लड़ाई में होने का फायदा बीजेपी को मिला और BJP ने 156 सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की.
AAP ने गुजरात में अपनी मुफ्त बिजली और शिक्षा योजनाओं को जबरदस्त प्रचार किया है. बीजेपी से नाराज लोगों को कांग्रेस की बजाए आम आदमी पार्टी में उम्मीद नजर आ रही है. कांग्रेस की कमजोर स्थानीय नेतृत्व और रणनीति की कमी ने AAP को बढ़त दे रही है. जाहिर है कि आम आदमी पार्टी को गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस से अलग लड़ना ही बेहतर विकल्प समझ रही है.
3-अपनी खास पहचान को और मजबूत करेगी
2012 में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी AAP ने शुरू से ही खुद को 'आम आदमी' की पार्टी के रूप में स्थापित किया, जो पारंपरिक राजनीति से अलग अपनी कल्याणकारी नीतियों और पारदर्शी शासन पर जोर देती है.
आम आदमी पार्टी ने अपने गठन होने के बाद से ही अपनी स्वतंत्र इमेज बनाई. एक अलग किस्म की राजनीति को जनता के सामने पेश किया. अरविंद केजरीवाल पहले अकसर कहा करते थे कि किसी भी पार्टी को न समर्थन देंगे और न ही उससे समर्थन लेंगे. उनकी यह बात जनता को पसंद आई. पहले दिल्ली और फिर पंजाब में उन्होंने अकेले दम पर जनता का समर्थन हासिल किया. जब जब उन्होंने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा उन्हें कोई फायदा नहीं मिला . उल्टे उन्हें नुकसान ही हुआ.
गुजरात में भी अकेले लड़कर वो 14.5 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल हुए. जाहिर है कि उन्हें अकेले लड़ना रास आता है. जनता में उनकी और उनकी पार्टी की अलग छवि है. अरविंद केजरीवाल अब अपने पंजाब और दिल्ली मॉडल को और मजबूत बनाने के लिए संघर्ष करेंगे.गठबंधन से दूरी बनाकर AAP अपनी इस अनूठी पहचान को और निखार सकती है.
4-आम आदमी पार्टी केवल कांग्रेस से दूर हो रही है
आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन से दूर हो रही है . पर गठबंधन की दूसरी पार्टियों से वह सहयोग करती रहेगी. शुक्रवार को पार्टी के सांसद संजय सिंह ने आज तक से संसद में रणनीति के बारे में कहा कि संसदीय मुद्दों पर हम टीएमसी, डीएमके जैसी विपक्षी पार्टियों का समर्थन लेते हैं और वे भी हमारा समर्थन लेते हैं.